Balance Sheet Explained In Hindi
Balance Sheet – हमे किसी भी कंपनी में इनवेस्टमेंट करने से पहले उस कंपनी का एनालिसिस ज़रूर करना चाहिए। और किसी भी कंपनी का एनालिसिस करने के लिए हमे उस कंपनी के फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स को समझना बहुत ही ज़रूरी है।
फाइनेंसियल स्टेटमेंट्स मेनली 3 तरह के होते हैं। जिन्हें Balance Sheet, इनकम स्टेटमेंट और कैश फ्लो स्टेटमेंट कहा जाता है। और अभी हम इस Post में Balance Sheet के बारे में जानेंगें।

हम जानेगें की Balance Sheet क्या होता है? इसे बैलेंस शीट क्यों कहा जाता है ? और इस मे कंपनी से रिलेटेड क्या-क्या इन्फॉर्मेशन होती है? साथ ही Post के आखिर में हम देंगे आपको एक छोटा सा टास्क इसी Post के बेसिस पर ताकि आपको इस Post का कंटेंट और अच्छे से समझ आ सके। इसलिए आप इस Post को ध्यान से पूरा ज़रूर देखें।
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आईये जानते हैं कि बैलेंस शीट क्या होता है?
दोस्तों, बैलेंस शीट एक फाइनेंसियल स्टेटमेंट है जिसे हर एक कंपनी फाइनेंसियल ईयर के एन्ड होने पर बनाती है। और कंपनियां इसे मेनली अपने एनुअल रिपोर्ट में शो करती हैं। बैलेंस शीट हमे एक कंपनी के तीन चीज़ों के बारे में जानकारी देता है।
पहला है एसेट्स यानी कि कंपनी के पास क्या-क्या इकोनॉमिक वैल्यू वाली चीज़े हैं।
दूसरा है लायबिलिटीज़ यानी कि कंपनी ने कितना उधार ले रखा है। और तीसरा है शेयरहोल्डर्स इक्विटी यानी कि कंपनी के शेयरहोल्डर्स का कितना पैसा अभी कंपनी में इनवेस्टेड है। शेयरहोल्डर्स इक्विटी को हम ओनर्स इक्विटी या सिर्फ इक्विटी या कंपनी का नेट वर्थ या बुक वैल्यू भी कहते हैं। इस तरह बैलेंस शीट हमे फाइनेंसियल ईयर एन्ड होने पर कंपनी के एसेट्स, लायबिलिटीज़ और शेयरहोल्डर्स इक्विटी के बारे में बताता है।
दोस्तों, सबसे पहली बात जो हमे समझना है वो ये की बैलेंस शीट को बैलेंस शीट क्यों कहा जाता है?
यहाँ पर बैलेंस शब्द का आखिर मतलब क्या है? दोस्तों, बैलेंस शीट 2 हिस्सों में बंटा होता है।
एक हिस्से में हम एसेट्स को शो करते हैं। और दूसरे हिस्से में हम इक्विटी और लायबिलिटीज़ को शो करते हैं।
और ये दोनों हिस्सों की वैल्यू हमेशा इक्वल होती है। यानी कि कंपनी के एसेट्स
और कंपनी की इक्विटी प्लस लायबिलिटीज़ दोनों हमेशा बैलेंस में होते हैं।
और इसी वजह से ही बैलेंस शीट को बैलेंस शीट कहा जाता हैं। अगर हम इसी चीज़ को एक इक्वेशन में लिखें
तो हम कहेंगे कि, एसेट्स=इक्विटी+लायबिलिटीज़। और इस इक्वेशन को बैलेंस शीट इक्वेशन कहा जाता है।
दोस्तों, बैलेंस शीट मेनली 2 तरह से बनाया जाता है।
पहला है हॉरिजोंटल बैलेंस शीट और दूसरा है वर्टीकल बैलेंस शीट। हॉरिजोंटल बैलेंस शीट में बैलेंस शीट हॉरिजोंटली 2 भागों में बंटा होता है। जिसमें लेफ्ट साइड में एसेट्स होते हैं। और राइट साइड में इक्विटी एंड लायबिलिटीज़ दोनों होते हैं। वहीं वर्टीकल बैलेंस शीट में बैलेंस शीट वर्टिकली 2 भागों में बंटा होता है। पहले भाग में जेनरली एसेट्स होते हैं। और उसके नीचे दूसरे भाग में इक्विटी एंड लायबिलिटीज़ दोनों होते हैं। और लगभग सारी कंपनियां वर्टीकल बैलेंस शीट ही बनाती हैं। आईये अब हम एसेट्स, लायबिलिटीज़ और इक्विटी तीनो साइड्स को अच्छे से समझते हैं।
दोस्तों, बैलेंस शीट के एसेट साइड में कंपनियां अपने टोटल एसेट्स को 2 भागों में बांट कर दिखाती हैं।
पहले को करंट एसेट्स और दूसरे को नॉन-करंट एसेट्स या लॉन्ग टर्म एसेट्स भी कहा जाता है।
करंट एसेट्स में वो सारे एसेट्स आते हैं जिसे कंपनी एक साल के अंदर यूज़ कर लेगी या कैश में बदल देगी। जैसे कैश एंड कैश एक्विवलेंट्स, शॉर्ट टर्म इन्वेस्टमेंट, इन्वेंटरी, एकाउंट्स रेसिवबल्स, एट-सेट्रा। वहीं नॉन-करंट एसेट्स में वो सारे एसेट्स आते हैं
जिसे कंपनी एक साल से ज्यादा टाइम तक यूज़ करती रहेगी। जैसे लैंड, बिल्डिंग्स,
फैक्ट्रीज, इक्विपमेंट्स, लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट एट-सेट्रा। और इन दोनों तरह के एसेट्स को ऐड करके कंपनियां अपने टोटल एसेट्स को शो करती हैं। दोस्तों, बैलेंस शीट के इक्विटी और लायबिलिटीज़ साइड में कंपनियां जेनरली पहले लायबिलिटीज़ को शो करती हैं। और फिर इक्विटी को। कंपनियां अपने टोटल लायबिलिटीज़ को भी एसेट्स की तरह 2 भागों में बांट कर दिखती है। पहला करंट लायबिलिटीज़ और दूसरा नॉन-करंट लायबिलिटीज़ या जिसे लॉन्ग टर्म लायबिलिटीज़ भी कहा जाता है। करंट लायबिलिटीज़ में वो सारी लायबिलिटीज़ आती हैं जिसे कंपनी को एक साल के अंदर चुकाना होता है। जैसे शॉर्ट टर्म लोन्स, एकाउंट्स पेयबल्स, एट-सेट्रा। वहीं नॉन-करंट लायबिलिटीज़ में वो सारी लायबिलिटीज़ आती हैं जिसे कंपनी को एक साल के बाद चुकाना होता है। जैसे लॉन्ग टर्म लोन्स। और फिर इन दोनों तरह के लायबिलिटीज़ को ऐड करके कंपनियां अपनी टोटल लायबिलिटीज़ को शो करती हैं। दोस्तों, लायबिलिटीज़ के बाद कंपनियां इक्विटी और लायबिलिटीज़ साइड में इक्विटी को शो करती हैं। जिसमें मेनली इक्विटी शेयर कैपिटल, अदर इक्विटी और रीटेंड अर्निंग्स होते हैं।
और इन सबको ऐड करके कंपनियां अपनी टोटल इक्विटी को शो करती हैं। इसके बाद टोटल लायबिलिटीज़ और टोटल इक्विटी को ऐड करके कंपनियां टोटल इक्विटी एंड लायबिलिटीज़ शो करती हैं। जो हमेशा टोटल एसेट्स के बराबर होता है। और जिस से बैलेंस शीट बैलेंस रहता है।
दोस्तों, अब वक्त आ गया है आज के टास्क का आज का टास्क ये है कि आपको इस पोस्ट पर कमेंट करके बताना है कि MRF ltd. के साल 2020 के एनुअल रिपोर्ट में टोटल एसेट्स कितने थे?
तो दोस्तों ये था हमारा आज का पोस्ट बैलेंस शीट के ऊपर।
इसमे हमने जाना कि बैलेंस शीट क्या होता है?
इसे बैलेंस शीट क्यों कहा जाता है?
और इसमें कंपनी से रिलेटेड क्या क्या इन्फॉर्मेशन होती हैं?
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Thanks